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2 Sep 2021 · 1 min read

धर्म से अलगा भइल हियरा भरल बा गंदगी।

धर्म से अलगा भइल हियरा भरल बा गंदगी।
__________________________________________

लोभ लालच में फँसल बा आजु देखीं आदमी।
धर्म से अलगा भइल हियरा भरल बा गंदगी।

बेंचि के ईमान आपन जुर्म के रहबर बनल,
का कही कइसे कही जी मिट गइल बा सादगी।

देत बा धोखा उहे जवने पे तोहरा नाज बा,
देख लऽ अब रह गइल बाटे वफ़ा बस कागजी।

भूख भोजन भीख के कइसन बनल रिश्ता इहा,
पेट के खातिर भइल गुमराह बाटे जिन्दगी।

नाम बा बड़हन मगर दर्शन उहा के छोट बा,
काम सब शैतान जइसन होत बा पर बंदगी।

घेर लिहले बा अन्हरिया भोर के ना आस बा,
साँच खोजे जे चलल ओकरे मिलल बेचारगी।

आगवानी झूठ के अब साँच से दूरी बनल,
झूठ खातिर बा बढ़ल देखऽ सचिन दिवानगी।

✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’

1 Like · 375 Views
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