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31 Jul 2016 · 1 min read

धरा

मुक्तक
धधकती धरा धैर्य खोने लगी है।
हृदय से कटुक आज होने लगी है।
सहन कर्म कर अब मनुज के अनैतिक।
प्रकृति दंड देकर डुबोने लगी है।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

Language: Hindi
1 Like · 585 Views
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Books from अंकित शर्मा 'इषुप्रिय'
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