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5 Jun 2022 · 1 min read

धरती माँ

धरती कहे मैं मौन हूँ, मैने किया विष का वरण।
प्रत्येक प्राणी के लिए, मैंने दिया पर्यावरण।।
धूमिल धुआँ मैंने पिया , जलता रहा मेरा हिया।
मैंने सहा चिरकाल तक,बढ़ता हुआ शहरीकरण।।

भू-गर्भ से लाकर तुम्हें, मैंने दिए महँगे रतन।
तुमने मुझे दे दी विषैली,कारखानों की तपन।।
खाद्यान्न बोने के लिए, मैने तुम्हें दी थी मृदा।
तुमने मिला दी खाद में,खूंखार जहरीली दवा।।

मैंने तुम्हें जंगल दिए, पर्वत तथा झरने दिए।
सुंदर सरोवर, स्वच्छ जल,ईंधन तथा गहने दिए।।
औषधि उगाकर भेंट की,फलफूल भी सुंदर दिए।
विस्तृत वनों को काटकर, तुमने मुझे खंजर दिए।

चेतावनी है आखिरी, अब त्रासदी होगी बड़ी ।
अस्तित्व को मानव अहो! ये है परीक्षा की घड़ी।।
मैं मैथिली ममतामयी, तुम और यदि तड़पाओगे।
मेरा अगर धीरज डिगा, तुम धूल में मिल जाओगे।।

जगदीश शर्मा सहज

Language: Hindi
Tag: छंद
3 Likes · 8 Comments · 185 Views
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