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7 Feb 2022 · 1 min read

दो आखिरी बचे हुए सितारे

जिसे जितना अपना
समझा
वह उतना ही पराया
निकला
हर किसी ने
आखिरकार छोड़ ही दिया मुझे
जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर
तन्हा
यादों का काफिला भी
अब तो
धुंधला सा पड़ने लगा है
चमकते हुए आसमान में
बस दो आखिरी बचे हुए सितारे
अंत में दिखते हैं
एक मेरे पिता सूरज से
दूसरी मेरी मां एक चांद सी।

मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001

Language: Hindi
Tag: कविता
140 Views
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