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1 Jun 2024 · 1 min read

दोहा पंचक. . . . नवयुग

दोहा पंचक. . . . नवयुग

दूषित हो न परम्परा, देना इस पर ध्यान।
धारित तन पर हों सदा, मर्यादित परिधान।।

मानव मन कब मानता, नियमों की जंजीर ।
हर बंधन को तोड़ना, उसकी है तासीर ।।

कितना भी स्वच्छंद हो ,नया जमाना आज ।
वक्त पुराना आज भी, चाहे सकल समाज ।।

मर्यादा का हो रहा , खुलेआम उपहास ।
युवा वर्ग अब कर रहा, अल्प वस्त्र में रास ।।

बदल गई है प्यार की, परिभाषा अब यार ।
काम वासना से भरा, वर्तमान का प्यार ।।

सुशील सरना / 1-6-24

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