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30 May 2023 · 1 min read

दोस्ती

इस बार मैंने उनसे पूछ ही बैठा….”दोस्ती करोगी मुझसे?”
वह बोली…..”क्या तुम्हारी नजर में शारीरिक संबंध का नाम ही दोस्ती है? नहीं….नहीं, मैं ऐसे दोस्ती नहीं करना चाहती. मैं तुम्हें नहीं, तुम्हारे व्यक्तित्व को चाहती हूं, तुम्हारे अंदर के रचनाकार को चाहती हूं और मैंने एक जमाने से उससे दोस्ती भी कर रखी है. इसका जिंदा सबूत वो गुमनाम बधाई खत है, जो अखबारों में तुम्हारे रचना प्रकाशन के हर चौथे रोज बाद तुम्हें मिल जाते हैं. जानते हो वो खत किसके होते हैं? वो खत मैं ही भेजा करती हूं.”
उसका जवाब सुन मैं अवाक रह गया.

✍️_ राजेश बंछोर “राज”
हथखोज (भिलाई), छत्तीसगढ़, 490024

2 Likes · 146 Views
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