देश भक्ति की विजय गुँजाना
किसके नाम लिखूँ मैं पाती
तूँ ही बता पवन वासन्ती
मन मन जहर घोलकर पछुआ
ठहरा रही हमें ही घाती ।
सूरज के पहारेदारों ने
जब से धूप बाँट कर खाई
निस्तेजी चंदा का चेहरा
निशा कालिमा से घबराई ।
कैसे नष्ट हुई फुलवारी
किसनें लूटी गंध सुगंध
हर क्यारी में खूनी छीटे
तोड़ रहे अन के मणिबंध ।
प्यार फूलना फलना था जब
फूट रहे बारूदी बादल
फूल फूल से डरा हुआ है
जाने कौन दिखा दे छलबल ।
कल कोई कविता को कोसे
कवि पहनो रण्चंडी बाना
छोड़ कलम हथियार उठाओ
देश भक्ति की विजय गुँजाना