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22 Apr 2020 · 1 min read

देश की विडंबना

(देश की विडंबना)

आज पता चल रहा हैं ,
देश हमारा बदल रहा हैं,।

झूठों की टोलियों से,
पढ़ा लिखा फिसल रहा हैं,।

कोई दान दें रहा हैं,
कोई आटा चुरा रहा हैं,।

पैसे बालों को लिबाया जा रहा हैं,
मजबूर मजदूरों को पेदल
चलाया जा रहा हैं,।

पहले काला धन गायब हो गया,
अब दान जाने कहां जा रहा हैं,।

भाषणों भाषण मिलता जा रहा हैं,
हाथ किसी के न कुछ आ रहा हैं,।

उल्लू को महान बताया जा रहा हैं,
कामयाब को ना कामयाब बताया जा रहा हैं,।

पढ़ें लिखों को जेल भिजवाया जा रहा हैं,
घंटी छापों से देश चलवाया जा रहा हैं,।

आज पता चल रहा हैं ,
देश हमारा बदल रहा हैं,।

झूठों की टोलियों से,
पढ़ा लिखा फिसल रहा हैं,।।

लेखक—Jayvind Singh Ngariya ji

Language: Hindi
Tag: कविता
2 Likes · 2 Comments · 319 Views

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