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14 Aug 2021 · 1 min read

देखो बचपन खो रहा !

देखो बचपन खो रहा,
गहरी नींद में सो रहा।
सबके हाथ में कोई यंत्र है,
मनोरंजन का नया मंत्र है।

सड़कों पर आवाज़ नहीं होती,
गीतों वाली साज नहीं होती।
हर कोई देखो अब व्यस्त है,
अपने आप में ही मस्त है ।

वो खेलकूद, वो लड़ाई झगडे,
सब जैसे कहीं लुप्त हो गए।
वो रोना धोना, रूठना मनाना,
सब देखो जैसे सुस्त हो गये।

मोबाइल का ये प्रभाव है,
या भावनाओं का अभाव है।
क्यों अब हम गले नहीं मिलते,
क्यों लोगों के चेहरे नहीं खिलते।

क्यों इतना दूर होने लगे हैं,
अहम में क्यों चूर होने लगे हैं।
क्यों इतना अधीर हो गए हैं,
बेवजह क्यों गंभीर हो गए है।

आलोचना हम सह नहीं पाते,
मन की बात भी कह नहीं पाते।
डरते हैं इतना क्यों अपनों से,
घबराते हैं रातों को सपनो से।

ये कैसा समय, कैसा वक्त है,
लहजा सबका क्यों सक्त है।
प्रेम की वो डोर कैसे टूट गई,
हंसी होठों से क्यों रूठ गई।

भावुकता का रहा भाव नहीं,
प्रेम वाला भी स्वभाव नहीं।
मन ही मन हर कोई रो रहा,
देखो बचपन खो रहा।

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 1 Comment · 259 Views
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