दूर …के सम्बंधों की बात ही हमलोग करना नहीं चाहते ……और

दूर …के सम्बंधों की बात ही हमलोग करना नहीं चाहते ……और तो और निकट संबंधों के परिधियों से भी मुक्त होना चाहते हैं……बात यहीं तक आ कर नहीं रुक जाती है …अपने मात-पिता को भी हमलोग अनदेखी करने लगते हैं…पर जो आनंद अपनों से होता है ….वह स्थायी आनंद और कहां ?@परिमल