Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
9 Aug 2021 · 2 min read

दुर्योधन कब मिट पाया:भाग-16

इस दीर्घ कविता के पिछले भाग अर्थात् पन्द्रहवें भाग में दिखाया गया जब अर्जुन के शिष्य सात्यकि और भूरिश्रवा के बीच युद्ध चल रहा था और युद्ध में भूरिश्रवा सात्यकि पर भारी पड़ रहा था तब अपने शिष्य सात्यकि की जान बचाने के लिए अर्जुन ने बिना कोई चेतावनी दिए युद्ध के नियमों की अवहेलना करते हुए अपने तीक्ष्ण वाणों से भूरिश्रवा के हाथ को काट डाला। कविता के वर्तमान भाग अर्थात् सोलहवें भाग में देखिए जब कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा पांडव पक्ष के सारे बचे हुए योद्धाओं का संहार करने हेतु पांडवों के शिविर के पास पहुँचे तो वहाँ उन्हें एक विकराल पुरुष उन योद्धाओं की रक्षा करते हुए दिखाई पड़ा। उस विकराल पुरुष की आखों से अग्नि समान ज्योति निकल रही थी। वो विकराल पुरुष कृपाचार्य , कृतवर्मा और अश्वत्थामा के लक्ष्य के बीच एक भीषण बाधा के रूप में उपस्थित हुआ था, जिसका समाधान उन्हें निकालना हीं था । प्रस्तुत है दीर्घ कविता “दुर्योधन कब मिट पाया ” का सोलहवाँ भाग।

हे मित्र पूर्ण करने को तेरे मन की अंतिम अभिलाषा,
हमसे कुछ पुरुषार्थ फलित हो ले उर में ऐसी आशा।
यही सोच चले थे कृपाचार्य कृतवर्मा पथ पे मेरे संग,
किसी विधी डाल सके अरिदल के रागरंग में थोड़े भंग।

जय के मद में पागल पांडव कुछ तो उनको भान कराएँ,
जो कुछ बित रहा था हमपे थोड़ा उनको ज्ञान कराएँ ?
ऐसा हमसे कृत्य रचित हो लिख पाएं कुछ ऐसी गाथा,
मित्र तुम्हारी मृत्यु लोक में कुछ तो कम हो पाए व्यथा।

मन में ऐसा भाव लिए था कठिन लक्ष्य पर वरने को ,
थे दृढ प्रतिज्ञ हम तीनों चलते प्रति पक्ष को हरने को।
जब पहुंचे खेमे अरिदल योद्धा रात्रि पक्ष में सोते थे ,
पर इससे दुर्भाग्य लिखे जो हमपे कम ना होते थे।

प्रतिपक्ष शिविर के आगे काल दीप्त एक दिखता था,
मानव जैसा ना दिखता यमलोक निवासी दिखता था।
भस्म लगा था पूरे तन पे सर्प नाग की पहने माला ,
चन्द्र सुशोभित सर पर जिसके नेत्रों में अग्निज्वाला।

कमर रक्त से सना हुआ था व्याघ्र चर्म से लिपटा तन,
रुद्राक्ष हथेली हाथों में आयुध नानादि तरकश घन।
निकले पैरों से अंगारे थे दिव्य पुरुष के अग्नि भाल,
हेदेव कौन रक्षण करता था प्रतिपक्ष का वो कराल?

कौन आग सा जलता था ये देख भाव मन फलता था,
गर पांडव रक्षित उस नर से ध्येय असंभव दिखता था।
प्रतिलक्षित था चित्तमें मनमें शंका भाव था दृष्टित भय,
कभी आँकते निजबल को और कभी विकराल अभय।

अजय अमिताभ सुमन: सर्वाधिकार सुरक्षित

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 269 Views

Books from AJAY AMITABH SUMAN

You may also like:
तुम्हें अकेले चलना होगा
तुम्हें अकेले चलना होगा
अभिषेक पाण्डेय ‘अभि’
अभी तक हमने
अभी तक हमने
*Author प्रणय प्रभात*
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Jitendra Kumar Noor
क्षणिक स्वार्थ में हो रहे, रिश्ते तेरह तीन।
क्षणिक स्वार्थ में हो रहे, रिश्ते तेरह तीन।
डॉ.सीमा अग्रवाल
इतना मत लिखा करो
इतना मत लिखा करो
सूर्यकांत द्विवेदी
उम्र गुजर रही है अंतहीन चाह में
उम्र गुजर रही है अंतहीन चाह में
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
उनसे पूंछो हाल दिले बे करार का।
उनसे पूंछो हाल दिले बे करार का।
Taj Mohammad
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में डूब जाएँ,
इश्क के चादर में इतना न लपेटिये कि तन्हाई में...
Nav Lekhika
कुछ तो है
कुछ तो है
मानक लाल"मनु"
सूखा शजर
सूखा शजर
Surinder blackpen
सुरक्षा कवच
सुरक्षा कवच
Dr. Pradeep Kumar Sharma
श्री श्रीचैतन्य महाप्रभु
श्री श्रीचैतन्य महाप्रभु
Pravesh Shinde
मैं आजादी तुमको दूंगा,
मैं आजादी तुमको दूंगा,
Satish Srijan
✍️हृदय को थोड़ा कठोर बनाकर
✍️हृदय को थोड़ा कठोर बनाकर
'अशांत' शेखर
नया सबेरा
नया सबेरा
Shekhar Chandra Mitra
गर्दिश -ए- दौराँ
गर्दिश -ए- दौराँ
Shyam Sundar Subramanian
ज़िंदगी के सारे पृष्ठ
ज़िंदगी के सारे पृष्ठ
Ranjana Verma
हाथ मलना चाहिए था gazal by Vinit Singh Shayar
हाथ मलना चाहिए था gazal by Vinit Singh Shayar
Vinit kumar
When life  serves you with surprises your planning sits at b
When life serves you with surprises your planning sits at...
Nupur Pathak
Book of the day: धागे (काव्य संग्रह)
Book of the day: धागे (काव्य संग्रह)
Sahityapedia
चलो निकट से जाकर,मैया के दर्शन कर आएँ (देवी-गीत)
चलो निकट से जाकर,मैया के दर्शन कर आएँ (देवी-गीत)
Ravi Prakash
एकदम सुलझे मेरे सुविचार..✍️🫡💯
एकदम सुलझे मेरे सुविचार..✍️🫡💯
Ankit Halke jha
💐प्रेम कौतुक-345💐
💐प्रेम कौतुक-345💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
पुस्तक समीक्षा-----
पुस्तक समीक्षा-----
राकेश चौरसिया
जीवन की अनसुलझी राहें !!!
जीवन की अनसुलझी राहें !!!
Shyam kumar kolare
शायरी
शायरी
goutam shaw
कुछ कहा मत करो
कुछ कहा मत करो
Dr. Sunita Singh
किसी के वास्ते
किसी के वास्ते
Dr fauzia Naseem shad
"वो गुजरा जमाना"
Dr. Kishan tandon kranti
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
बहुत दिनों से सोचा था, जाएंगे पुस्तक मेले में।
सत्य कुमार प्रेमी
Loading...