दिल की दहलीज पर कदमों के निशा आज भी है

दिल की दहलीज पर कदमों के निशा आज भी है
दिल में आहिस्ता-आहिस्ता सा दर्द आज भी है |
वह कौन सी जिद में मगरूर हो कर बैठा है
मेरे दिल में उसके लिए मोहब्बत आज भी है
कवि दीपक सरल
दिल की दहलीज पर कदमों के निशा आज भी है
दिल में आहिस्ता-आहिस्ता सा दर्द आज भी है |
वह कौन सी जिद में मगरूर हो कर बैठा है
मेरे दिल में उसके लिए मोहब्बत आज भी है
कवि दीपक सरल