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2 Sep 2016 · 1 min read

दिलकशी अब नहीं गुलाबों में

छुप गये आप क्यूं हिजाबों में
चाँद रहता है क्या नक़ाबों .में

उम्र सारी गुज़ार दी हमने
जिन्दगी के हसीन ख्वाबों में

जब से जाने बहार रुठी है
दिलकशी अब नहीं गुलाबों में

आज आलिम बने वो फिरते हैं
मन न लगता था कल किताबों में

हम भी रफ़ रफ़ पे आज बैठे हैं
पांव डाले हुए रकाबों में……

वो ज़बां पर कभी नहीं आते
शेर छपते हैं जो किताबों मे

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