*दादा जी के टूटे सारे दॉंत, पोपला मुख है (गीत)*
दादा जी के टूटे सारे दॉंत, पोपला मुख है (गीत)
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दादा जी के टूटे सारे दॉंत, पोपला मुख है
1
कहॉं परॉंठा सिंका हुआ, अब दादा जी खा पाते
भिगो-भिगो कर सब्जी में धीरे से रोज चबाते
खाने-पीने का अब पहले वाला कहीं न सुख है
2
मूॅंगफली बरसों से दादाजी ने कभी न खाई
काजू या बादाम खा लिया, समझो शामत आई
छील नहीं पाते हैं गन्ना, इसका भारी दुख है
3
बचपन बीता, गई जवानी, वृद्धावस्था ढोते
याद पुरानी दॉंतों में मस्ती को करके रोते
टूटे दॉंत बताते हैं किस ओर हवा का रुख है
दादा जी के टूटे सारे दॉंत, पोपला मुख है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451