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22 Feb 2024 · 1 min read

द़ुआ कर

द़ुआ कर
गर आब-ए-तल्ख़
हमारा जो टपका
फ़साना नारास्ती का तेरा

हो कर कहीं फ़ुगां
ग़ैहान में ना फैले
जबीं पर मेरे ना उभरे
नाआश्ना होने के किस्से

अतुल “कृष्ण”

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