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18 Aug 2021 · 2 min read

दहेज

व्यंग्य
दहेज
*****
दहेज़ दहेज़ दहेज़
कितना अजीब है,
दहेज़ माँगना बुरा कैसे है?
ये सिर्फ बहाना है,
दहेज़ यदि इतना बुरा है तो
तो बेटी का बाप बेटे के बाप से
सीधे सीधे पूछता है क्यों?
उसकी डिमांड।
क्या दिखाना चाहता है वो
आखिर बेटे के बाप को?
शायद उसकी औकात
दिखाना चाहता है,
या अपनी हैसियत से
उसका बेटा खरीदना चाहता है?
दहेज की माँग न हो तो
अच्छे भले लड़कों में
तमाम खोट ही खोट नजर आता है,
रिश्तों का अकाल सा पड़ जाता है।
क्योंकि कन्या के लिए
वर भला अब कौन तलाशता है?
अब तो लगता है कि हर बाप भी
बेटी के लिए पति नहीं
सिर्फ गुलाम चाहता है,
बेटी की खुशियों से अधिक
दुनिया को अपनी हैसियत
दिखाना चाहता है,
बेटी के सास ससुर पति परिवार को
पैसे के बोझ से दबाए रखकर
बेटी की स्वतंत्रता चाहता है।
मगर भूल जाता है
बेटी के जीवन में खुशियां कम
गम और अस्थिरता
आपसी सामंजस्य में वह खुद ही
पैसों का जहर घोल देता है,
रिश्तों का अहसास पैसों के बोझ तले
सदा सदा के लिए दफन हो जाता है।
दहेज़ सिर्फ़ रोना है
बस महज बहाना है
जब हम बहन बेटी ब्याहते हैं,
वहीं जब बेटा भाई ब्याहना होता है
तो बड़े ही प्यार और सफाई से
दहेज़ को परदे के पीछे रख
जाने कैसा कैसा अर्थशास्त्र
बेटी वालों को समझाता है।
दहेज का तो सिर्फ़ बहाना है
बेटी वाला हो या बेटा वाला
दोनों का असल मकसद एक है
दहेज के बहाने से समाज में
अपनी औकात दिखाना है।
☝ सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उ.प्र.
8115285921
© मौलिक, स्वरचित
17.08.2021

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 132 Views

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