*दही (कुंडलिया)*

*दही (कुंडलिया)*
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खाते जो प्रतिदिन दही, देखो उनकी शान
तन होता बूढ़ा नहीं , रहता सदा जवान
रहता सदा जवान , पचा करता है खाना
ठंडा रहे दिमाग , नहीं गुस्से का आना
कहते रवि कविराय , मुक्ति रोगों से पाते
दही कटोरी एक , रोज सज्जन जो खाते
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*रचयिता: रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा,*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
*मोबाइल 9997615451*