*दलबदलू के दल बदलने पर शोक न कर (हास्य व्यंग्य)*

*दलबदलू के दल बदलने पर शोक न कर (हास्य व्यंग्य)*
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दल बदलू ने दल बदल लिया । यह तो होना ही था ! कब तक वह तेरे दल में रहता ! अब उसका शोक न कर ! उसे जाना था ,चला गया । जैसे वह पुराना दल छोड़कर तेरे दल में आया था ,वैसे ही तेरा दल छोड़कर दूसरे दल में चला गया ।
दलबदल राजनीति का शाश्वत नियम है। जिसे दलबदल करना होता है ,वह चुनाव से ठीक पहले दल अवश्य बदलता है अन्यथा उसका दिल पाँच साल तक भटकता रहता है और उसे मुक्ति नहीं मिलती । दल बदलू नेता आज तक किसका हुआ है ? वह बाजार की कॉलगर्ल है जिसे जहां अधिक मूल्य मिलता दिखता है ,चली जाती है । आज इसकी है, कल उसकी है । परसों वह किसी और की हो जाएगी। दल बदलू और दल के रिश्ते के मूल स्वरूप को पहचानो ! वह पति-पत्नी की तरह नहीं हैं, जो सात जन्मों तक साथ निभाएंगे। उनका लिव-इन-रिलेशनशिप रहता है । कल था,आज समाप्त हो गया। इसमें आश्चर्यजनक कुछ भी नहीं है ।
दलबदलू नेता दल को एक चोले की तरह पहनता है । पाँच साल ओढ़ा, फिर फेंक दिया । फिर दूसरा पहन लिया। उसके लिए क्या पार्टी ? क्या पार्टी का झंडा ? क्या टोपी का रंग ? क्या गले में पड़ा पटका ? यह सब ऊपरी दिखावे की वस्तुएं हैं । भीतर से वह चंचल ,चलायमान दल बदलू ही है । उसकी आस्था को पहचानो । समझो उसके मनोविज्ञान को । उसका हृदय कुर्सी में निवास करता है । खाओ पियो और मौज करो ,उसकी संस्कृति है। शब्द और भाषण उसका व्यवसाय है ।.उससे जब चाहे जिस दल की प्रशंसा के भाषण दिलवा लो । वह जिस दल में जाएगा ,उसकी आराधना ऐसे करेगा जैसे सात जन्मो तक उसे वहीं पर निवास करना है । लेकिन पाँच साल भी नहीं बीतेंगे कि वह दल छोड़ देगा।
जो दल बदलना चाहता है उसे मत रोको । जाने दो । रोका तो वह उस समय जाएगा जब उसका जाना और भी बुरा होगा। वह अधिक हानि पहुंचा कर जाएगा। जो आना चाहता है ,उसकी इच्छा के मूल को पहचानो । दल बदलू तुम्हारे किस काम का ? वह अपना दल बदल कर तुम्हारे दल में आएगा और फिर तुम्हारा दल बदल के किसी और दल में चला जाएगा । तुम्हारी शाश्वत पूँजी तुम्हारा निष्ठावान कार्यकर्ता ही है । दल बदलू आएंगे और चले जाएंगे । कार्यकर्ता कभी दल छोड़कर नहीं जाता ।केवल उसकी ही वैचारिक निष्ठा दल के साथ होती है।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा , रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451