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15 Nov 2022 · 1 min read

दर्द ना मिटा दिल से तेरी चाहतों का।

तुझे पा लेता ऐसा मेरा मुकद्दर ना था।
पता था तू रुलाएगा मैं बेखबर ना था।।1।।

प्यास कैसे बुझती आबे समंदर ना था।
तू पास तो था मेरे पर मुकम्मल ना था।।2।।

गर तू चाहता तो ये सफर साथ कटता।
जिन्दगी जीने में इतना भी गम ना था।।3।।

मुलाकातों का सिलसिला कम ना था।
तू हकीकत था मेरा कोई वहम ना था।।4।।

दर्द ना मिटा दिल से तेरी चाहतों का।
दिलके जख्मों का कोई मरहम ना था।।5।।

हम कैसे हंसते जब रोने को गम था।
यूं तू दूर चला जायेगा ये भरम ना था।।6।।

मसरूफियत थी तेरी जिंदगी में बड़ी।
वरना चाहत के लिए वक्त कम ना था।।7।।

तू भी रोता जालिम मेरी तरह दर्द से।
तुझमें आशिकी का दीवानापन ना था।।
8।।

ताज मोहम्मद
लखनऊ

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