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3 Oct 2024 · 1 min read

दरिया की तह में ठिकाना चाहती है – संदीप ठाकुर

दरिया की तह में ठिकाना चाहती है
कश्ती तो बस आशियाना चाहती है

लेट आकर गिफ़्ट लाई हैं घड़ी तू
वक़्त की क़ीमत चुकाना चाहती है

इससे पहले पेड़ उसको बोझ समझे
सूखी डाली टूट जाना चाहती है

प्यार में मरने की बातें कर रही है
वो बिछड़ने का बहाना चाहती है

तेज़ दरिया, टूटा पुल, सुनसान जंगल
रात क्या सपना दिखाना चाहती है

ये मोहब्बत रूह तक पहुंचेगी लेकिन
जिस्म के रस्ते से जाना चाहती है

चांद चीखा रात पागल हो गई है
धूप का गजरा लगाना चाहती है

इक नई चाहत ने दस्तक दी है दिल पर
ज़िंदगी फिर आजमाना चाहती है
संदीप ठाकुर

6 Likes · 2 Comments · 348 Views
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