त्यागो तम अज्ञान मनुज,महा ज्योति से ज्योति जला ले
त्यागो तम अज्ञान मनुज, क्यों नींद में गहरी सोते हो
दुर्लभ मनुज जन्म को बंधु, क्यों प्रमाद में खोते हो
रह जाएगा माल खजाना,तन माटी हो जाएगा
भाई बंधू और कुटुम्ब कबीला,सब ठाठ पड़ा रह जाएगा
माया से आबध्द जीव, क्यों तेरा मेरा करता है
रोते-रोते आया है, क्यों रोते रोते मरता है
अमर नहीं है जग में कोई,सारा जग नश्वर है
आत्मा ज्योत ईश्वर की है,अनश्वर सदा अमर है
मनुज देह का लाभ उठा,महा ज्योति से ज्योति प्रकाशित कर
जनम जनम का मैल हटा,निज आत्म तत्व निर्मल कर
संयत कर पंच विकार,काम क़ोध लोभ मोह मत्सर
यही है मनुज जनम का हेतु, सेतु बना भव सागर तर
कर्म और अकर्म ज्ञान,बस मनुज जन्म को होता है
लख चौरासी जीव तो केबल, अपने जीवन को ढोता है
खाना पीना निद्रा मैथुन,हर जीवन में नैसर्गिक है
सोच समझ कर करने का,मनुज प़ज्ञा प़बर्तक है
सार समझ मनुज जीवन का, मन को लगाम लगा ले
खींच इंद्रियों के घोड़े, जीवन मुक्त बना ले
दास नहीं स्वामी बन मन का, अंतर्मन ध्यान लगा ले
ज्ञान कर्म और भक्ति योग,जो चाहे अपना ले
हंसते हंसते कर प़याण, अंतिम पथ सुलभ बना ले
यम नियम आसन प्राणायाम, प्रत्याहार से प्रीत लगा ले
ध्यान धारणा और समाधि,महा ज्योति से ज्योति जला ले
सुरेश कुमार चतुर्वेदी