तुमसे कहते रहे,भुला दो मुझको

तुमसे कहते रहे हम,भुला दो हमको।
वफ़ा का कोई और सिला दो हमको।
मर मर के जी रहे हैं इश्क करके हम,
जी उठे सच में ,ऐसी दुआ दो हमको।
मोहब्बत का ज़हर,असर नहीं करता
चाहता हूं दूसरा ज़हर खिला दो हमको।
बेबात ही ख्वाबों में आते ही रहते हो
हकीकत में मिलो और हिला दो हमको।
एक नफ़रत ही हम , शिद्दत से निभाते हैं
अरे कुछ इसके इलावा ज़रा दो हमको।
सुरिंदर कौर