तुमसे उम्मीद थी कि

तुमसे उम्मीद थी कि,
फिर से बनेंगे अच्छे रिश्ते,
फिर से शुरू होगी मुलाकात,
फिर से जुड़ेगी प्यार की डोर,
टूटेगी नफरत की दीवार,
और फिर से होगी सुबह।
तुमसे उम्मीद थी कि,
तुम करोगे कोशिश,
मुझको मनाने की,
मुझको सीने से लगाकर,
छुपाकर अपनी बाँहों में,
मुझको हँसाकर गीतों से।
तुमसे उम्मीद थी कि,
आयेगी तुमको शर्म,
मुझको बर्बाद देखकर,
कि तुमको आयेगी दया,
मेरे बहते ऑंसू देखकर,
तुम बुलावोगे मुझको।
तुमसे उम्मीद थी कि,
तुम करोगे मेरा सम्मान,
मेरी कामयाबी को देखकर,
तुम बनावोगे मुझको ख्वाब,
मेरा अपनापन समझकर,
मगर तुम तो गुमराह हो।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)