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23 Nov 2022 · 1 min read

* तिस लाग री *

डा. अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त

आजा आजा रे कन्हाई
तन्ने देरी कुयूं लगाई
दस बाज गे
तिस ते मेरी जाँ पे बन आई
तेरे पाछे सू रे भाई
मेरी माई की जिद्द थी हाई
बोली व्रत राख ले
आजा आजा रे कन्हाई
तन्ने देरी कुयूं लगाई
दस बाज गे
जी मेरा कुल कुल करता
रोटी काजे हौंके भरता
दस बाज गे
आजा आजा रे कन्हाई
तन्ने देरी कुयूं लगाई
दस बाज गे
इब्के व्रती होके छक ली
भूखी मेरी आत्मा किलस री
गल में कांटे चूभन लाग रे
आजा आजा रे कन्हाई
तन्ने देरी कुयूं लगाई
दस बाज गे
तेरे खातर मैं ते मर ली
निर्जल मछली सी तड़प री
दस बाज गे
दरसन दे दे मन्ने भाई
तेरे खातर बैठी से लुगाई
तन्ने सरम बी ना
आई दस बाज गे
आजा आजा रे कन्हाई
तन्ने देरी कुयूं लगाई
दस बाज गे

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