तब हर दिन है होली

तब हर दिन है होली
मन बैरी है हिरणाकश्यप,
इन्द्रियाँ हैं सब होलिका प्रबल।
ये रूह सदा प्रह्लाद सी है,
दुख सहती है हर क्षण हर पल।
सतगुर मेरा नरसिंह वीर,
कर ‘नाम’ कटार थमाया है।
इस अस्त्र से सारे शत्रु मिटे,
हर सत्संग में समझाया है।
ईर्षा द्वेष कपट छल निंदा,
काम क्रोध मय मेरी।
सुमिरन अगन में डाल जलाएं
तब होली हो तेरी।
शब्द है नरसिंह सुख का दाता,
देता नित आह्लाद।
हर पल रोज करें रखवाली,
जो भी हैं प्रह्लाद ।
हुकुम में रहें राम को ध्याएँ,
बोलें मीठी बोली।
जो भी मिला शुकर करें उसकी,
तब हर दिन है होली।
सतीश सृजन