*”तपस्या”*
नमन काव्य मंच -?जय श्री कृष्णा
विषय -*तपस्या*
ब्रह्मा जी की सृष्टि रचना में योगी मुनिजन करते तपस्या।
घनघोर जंगलों, पहाड़ों ,कन्दराओं गुफाओं में निर्जन स्थान में करे तपस्या।
चिंतन मनन हो गहन मुद्रा में लीन होकर समाधि स्थल पर करे तपस्या।
कई दिनों हजारों करोड़ सालों तक अंनत साधना में लीन रहते।
एकांतवास में शांति की खोज में साधक बैठा ध्यान मुद्रा में।
अंर्तमन में ज्योति जगाकर गहराई में उतर कर करे तपस्या।
विकट परिस्थिति में मानव शरीर तन मन से ध्यान लगाते।
मायामोह के जाल में फंसकर मौन धारण कर मुक्तिबोध कराता।
मुश्किल घड़ी आन पड़ी है घर में बैठे ही जप आराधना करते।
विध्न बाधाओं को दूर कर कष्ट मिटाने संकट हरते रहते ।
जीवन की असली परीक्षा की घड़ी आई है ये मन तपस्या करते।
रे मानव अब चिंता तू छोड़ दे बस ईश्वर भजन कीर्तन करते।
ध्यान मुद्रा में बैठे हुए जन्म मरण बंधन से मुक्ति का जतन करते।
अदभुत दर्शन से मिल जाता है शांति सुख अभय वरदान पा जाते।
वर्तमान स्थिति में ये शुभ फल दायी जब संघर्षो से जूझते।
उम्मीद का एक दीपक जलाकर अंतर्मन को जगाते।
*शशिकला व्यास*✍