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8 Sep 2024 · 1 min read

*तन – मन मगन मीरा जैसे मै नाचूँ*

तन – मन मगन मीरा जैसे मै नाचूँ
*****************************

कैसा नशा है , ये कैसा है जादू,
दिल हो रहा मदहोशी में बेकाबू।

जुल्फें सुनहरी रुखसारों पर फैली,
धड़के न धड़कन भी दर्शन की मारू।

गोरा बदन गोरे गालों पर लाली,
मटके कमर गौरी चलता जैसे भालू।

लहरे लहर जैसे दरिया का आँचल,
नीले नयन से टपके टप – टप आँसू।

ठहरे कदम चलते आगे ना पीछे,
देखो तनिक मीटर दिल का चालू।

मोटे नयन जैसे हो पीतल प्याला,
छाया नशा तन-मन हो जाता धाँसू।

यूँ ख्वाब में खोया रहता मनसीरत,
तन – मन मगन मीरा जैसे मै नाचूँ।

*****************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)

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