*ढोता रहा है आदमी (गीतिका)*

*ढोता रहा है आदमी (गीतिका)*
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(1)
बन गया जब बोझ तन ,ढोता रहा है आदमी
आदमी हँसता रहा , रोता रहा है आदमी
(2)
जिंदगी में एक जैसे, दिन सदा होते नहीं
आदमी पाता रहा, खोता रहा है आदमी
(3)
पाप -पुण्यों की फसल को दोपहर तक काटकर
ढल गई जब शाम फिर, बोता रहा है आदमी
(4)
खटखटाया भाग्य ने तो द्वार कितनी बार ही
आलसी जो है सदा, सोता रहा है आदमी
(5)
भावमय होकर हृदय से प्रार्थना कब कर सका
शब्द रटने में मगन, तोता रहा है आदमी
(6)
हो गई हद मूर्खता की, चक्र को तो देखिए
पाप गंगा में नहा, धोता रहा है आदमी
(7)
देवता बसते रहे हैं, आदमी की देह में
और दानव भी अधम, होता रहा है आदमी
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*रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा*
*रामपुर (उत्तर प्रदेश)*
_मोबाइल 99976 15451_