ठोकरें कितनी खाई है राहों में कभी मत पूछना

ठोकरें कितनी खाई है राहों में कभी मत पूछना
भटकते हुए मुसाफिर से उसका घर मत पूछना
मेरी मकबूलियत को मेरे हौसलों से मत पूछना
रातों मे क्या-क्या खोया है सबेरों से मत पूछना
✍️कवि दीपक सरल
ठोकरें कितनी खाई है राहों में कभी मत पूछना
भटकते हुए मुसाफिर से उसका घर मत पूछना
मेरी मकबूलियत को मेरे हौसलों से मत पूछना
रातों मे क्या-क्या खोया है सबेरों से मत पूछना
✍️कवि दीपक सरल