टिकट नहीं रहा (हास्य-व्यंग्य)

टिकट नहीं रहा (हास्य-व्यंग्य)
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टेलीफोन पर जैसे ही नेताजी ने सुना, उधर से आवाज आई थी” खबर बहुत बुरी है”
सुनकर ही नेताजी समझ गए थे कि खबर क्या होगी लेकिन फिर भी दिल कड़ा करके उन्होंने पूछ ही लिया” क्या खबर है?” और उधर से उत्तर मिला” आप को टिकट नहीं मिला”
सुनते ही नेताजी के सब्र का बॉंध टूट पड़ा। अब तक जिस पार्टी को वह न जाने किन-किन सुंदर विशेषताओं से पुकारते थे और अपने आप को केवल उसी का एक सिपाही मानते थे, क्षण भर में ही सारा नाता टूट गया ।गुस्से में भरकर वह चीखने लगे…” बेईमान.. दगाबाज ..धोखेबाज…मेरे पच्चीस लाख रुपए मार लिए , टिकट फिर भी नहीं दिलवाया ”
पूरे कमरे में उनका विलाप गूॅंज रहा था। धीरे धीरे खबर फैली। शोक प्रकट करने वालों की लाइन लगने लगी । नेताजी गुस्से में थे । कह रहे थे …”पार्टी छोड़ दूंगा । अब टिकट कहीं और से लिया जाएगा । हम भी अपनी ताकत दिखा देंगे । जनता के बीच हमारी लोकप्रियता सबको पता चल जाएगी”।
चमचे कह रहे थे “साहब ! आपको पार्टी की जरूरत नहीं है । आप तो जिस पार्टी से खड़े हो जाएंगे , जीत जाएंगे ।”
नेताजी ने इसी बीच कई जगह फोन मिला डाले । हर जगह उनका एक ही कहना था” हम चुनाव लड़ेंगे। टिकट का इंतजाम करो।”
सब जगह जवाब में क्या आया यह तो पता नहीं चल रहा था, लेकिन हॉं नेताजी का गुस्सा बढ़ता जा रहा था।
धीरे धीरे एक घंटा बीता ।नेताजी का गुस्सा अब थोड़ा कम था । लेकिन दुख चेहरे से टपक रहा था । फिर शोक सभा शुरू हुई । शोक सभा माने टिकट के न रहने पर उसकी स्मृति में आयोजित सभा। इसमें नेता जी के कुछ खास चमचे शामिल हुए। नेताजी दुखी होकर सिर लटकाए बैठे थे। चमचे उनके सामने और आसपास में घेरे खड़े थे। नेताजी बोले “सब कुछ खत्म हो गया ।टिकट हमें छोड़ कर चला गया।”
चमचे बड़ी मुश्किल से अपनी हॅंसी रोक पाए ।ऊपर से दुखी होने का नाटक करते हुए कहने लगे” हुकम सरकार ! ईट से ईट बजा देंगे”
नेताजी तब तक स्थिति को समझ चुके थे । कहने लगे “ठीक है ठीक है ! बैठ जाओ।”
फिर इधर-उधर की बातें हुई । किस पार्टी का टिकट मिलेगा, किसका नहीं मिल सकता… इस पर चर्चा हुई। निर्दलीय चुनाव लड़ने की संभावनाओं पर भी विचार किया गया ।आखिर में नेताजी ने चमचों के सामने वार्तालाप का निष्कर्ष निकालकर कहा “मैं पार्टी का सच्चा सिपाही हूॅं । पार्टी का जो भी निर्णय है वह मुझे स्वीकार है। हम चुनाव तन मन धन से, जिसको टिकट मिला है, उसी का लड़ाऍंगे ।”
बाद में एक चमचे के कान में फुसफुसाए “हराना है,,, बुरी तरह से हराना है।”
जिसके कान में नेताजी फुसफुसाए थे, उसने दूसरे के कान में यही शब्द फुसफुसाए और फिर धीरे-धीरे सभी चमचों को इसका पता चल गया।
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लेखक.. रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 615451