*झोलाछाप 【हास्य-व्यंग्य】*

*झोलाछाप 【हास्य-व्यंग्य】*
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_झोलाछाप_ कहकर जो असली बेइज्जती बेचारे झोले की हो रही है ,मुझे उसको लेकर ज्यादा चिंता है । सबसे ज्यादा भला तो झोला ही है । आम आदमी के काम आता है। उसे हाथ में लेकर व्यक्ति बाजार में जाता है और चार तरह का सौदा खरीद कर घर को लौट आता है ।
झोला सर्वसाधारण की पहचान है । सस्ता जरूर है ,लेकिन महंगे से महंगा भी बाजार में मिल जाता है । दुर्भाग्य से झोले की इमेज झोलाछाप कहकर सबसे ज्यादा खराब की जाती है । मानो यह कोई मामूली वस्तु है जिसका जैसे चाहे ,जब चाहे ,जो चाहे मजाक बना ले। बात को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है । अगर झोला न हो तो _झोलाछाप_ शब्द का अस्तित्व मिट जाएगा । लेकिन फिर उसके स्थान पर _कंडिया_ या _टोकरी_ को आना पड़ेगा। सोचिए क्या _कंडियाछाप_ या _टोकरीछाप_ कहना अच्छा लगेगा ? झोले का उपकार मानना चाहिए कि उसने अपने अस्तित्व को दांव पर लगाकर भी _झोलाछाप_ शब्द की इज्जत बचा ली है।
फिर आप _झोलाछाप_ के बारे में सोचिए ! वह केवल उस चिकित्सक के लिए उपयोग में नहीं आता जिसके पास झोला हो। सच तो यह है कि झोलाछाप डॉक्टर का झोले से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं होता। न वह झोला लेकर चलता है ,न उसके क्लीनिक में झोला हर समय रहता है ।लेकिन फिर भी उसे _झोलाछाप_ कहा जाता है । अगर दूर तक की सोची जाए तो वह हर चिकित्सक किसी न किसी रूप में _झोलाछाप_ ही है जो अपनी योग्यता के बारे में गलत रूप से भ्रम मरीजों के भीतर पैदा करता है । जिस विषय का वह विशेषज्ञ नहीं होता ,उस विषय में भी वह अपनी विशेषज्ञता का दावा करता है । तब क्या उसे _झोलाछाप_ कहना अनुचित होगा ?
बहुत से चिकित्सक आठ-दस दिन तक तो मरीजों का इलाज केवल इसलिए करते रहते हैं क्योंकि वह संयोगवश उनके पास इलाज के लिए आया होता है । मरीज बेचारा अपनी दो जेबों में से जब एक जेब के रुपए खर्च कर लेता है, तब यह चतुर डॉक्टर उस से कहते हैं कि उसका इलाज उनके वश में नहीं है । क्या यह झोलाछाप नहीं हैं ? बड़े-बड़े क्लिनिको और नर्सिंग होम में इस प्रकार का झोलाछाप व्यवहार चलता रहता है लेकिन उन्हें कोई झोलाछाप नहीं कहता ।
अनाड़ी लोग अपने आप में वास्तव में झोलाछाप नहीं होते । जो खुद को अनाड़ी होने के बाद भी खिलाड़ी घोषित करते हैं ,वह वास्तव में झोलाछाप हैं। आजकल आप किसी भी क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति के पास अपनी कोई भी समस्या लेकर चले जाइए ,वह उसके समाधान के लिए तैयार है। भले ही उसे उस समस्या के बारे में कुछ भी नहीं आता । यह झोलाछाप प्रवृत्ति नहीं तो और क्या है ? चांदी के आभूषण का कारीगर सोने के आभूषण में टांका लगाने से पीछे नहीं हटता, यह भी एक प्रकार का झोलाछाप ही है।
संसार _झोलाछापों_ से भरा पड़ा है। आजकल जबकि हर क्षेत्र में रिश्वत देकर लोग इंटरव्यू की परीक्षा में उत्तीर्ण हो रहे हैं तथा नकल के माध्यम से लिखित परीक्षा उत्तीर्ण कर रहे हैं, ऐसे में हर क्षेत्र _झोलाछापों_ से बढ़ता जा रहा है । हर कार्यालय मैं दस में से दो व्यक्ति _झोलाछाप_ हैं। बाकी आठ को उन्हें ढोना पड़ता है। झोलाछाप जिस काम को हाथ में लेंगे ,उसे बिगाड़ देंगे । ऐसे में घर ,परिवार, समाज और संस्थान सभी जगह जिम्मेदार लोगों को _झोलाछापों_ से कहना पड़ता है कि भैया मेहरबानी करके कोई काम हाथ में मत लो । आराम से बैठो। काम हम कर लेंगे। तुम बस झोला पकड़ कर बैठे रहो ।लोग समझते हैं कि जिसके हाथ में झोला है, वह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी लिए हुए हैं । जबकि सच्चाई यह होती है कि जो किसी के काम का नहीं होता ,उसके हाथ में झोला होता है ।
कुछ छुटभैया नेता इसलिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि उनके हाथ में बड़े नेता जी का झोला रहता है । हर किसी को बड़े नेता का झोला हाथ में लेने का सौभाग्य नहीं मिलता । जिस छुटभैये पर नेताजी की कृपा दृष्टि पड़ जाती है और वह अपना झोला उसे थमा देते हैं ,वह छुटभैया धन्य हो जाता है । अनेक छुटभैया सारा जीवन नेताजी का झोला पकड़े रहते ही राजनीति खत्म कर देते हैं । कुछ छुटभैया पदोन्नति प्राप्त करके बड़े नेता बन जाते हैं। उसके बाद उनके जो छुटभैया होते हैं ,वह अपना झोला उनमें से किसी एक को पकड़ा देते हैं । झोलाछाप शब्द की उत्पत्ति संभवतः इन घटनाओं से भी हुई होगी।
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लेखक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर ,उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451