Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Jun 2024 · 1 min read

जुआं में व्यक्ति कभी कभार जीत सकता है जबकि अपने बुद्धि और कौ

जुआं में व्यक्ति कभी कभार जीत सकता है जबकि अपने बुद्धि और कौशल से व्यक्ति हर बार विजय प्राप्त कर सकता है जुआं में कोई भी पहलू निश्चित नही है कब क्या हो जाए क्योंकि इसका पूर्वानुमान पूर्ण रूप से लगाना संभव नहीं है जैसे चुनावी एक्जिट पोल हमेशा सही सिद्ध नही होता ड्रीम इलेवन, माई इलेवन सर्कल पर टीम बनाना भी एक मानसिक आकलन है स्थाई विजय का पाथवे नही।
RJ Anand Prajapati

147 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

उसको फिर उससा
उसको फिर उससा
Dr fauzia Naseem shad
राम नाम  हिय राख के, लायें मन विश्वास।
राम नाम हिय राख के, लायें मन विश्वास।
Vijay kumar Pandey
सुख दुख के साथी
सुख दुख के साथी
Annu Gurjar
आशिक़ का किरदार...!!
आशिक़ का किरदार...!!
Ravi Betulwala
एक बूढ़ा बरगद ही अकेला रहा गया है सफ़र में,
एक बूढ़ा बरगद ही अकेला रहा गया है सफ़र में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
आज के ज़माने में असली हमदर्द वो, जो A का हाल A के बजाए B और C
आज के ज़माने में असली हमदर्द वो, जो A का हाल A के बजाए B और C
*प्रणय*
जिंदगी
जिंदगी
Deepali Kalra
असली खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है।
असली खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है।
ऐ./सी.राकेश देवडे़ बिरसावादी
इक ग़ज़ल जैसा गुनगुनाते हैं
इक ग़ज़ल जैसा गुनगुनाते हैं
Shweta Soni
मिटता नहीं है अंतर मरने के बाद भी,
मिटता नहीं है अंतर मरने के बाद भी,
Sanjay ' शून्य'
हिलोरे लेता है
हिलोरे लेता है
हिमांशु Kulshrestha
चाह की चाह
चाह की चाह
बदनाम बनारसी
पिता
पिता
Shashi Mahajan
बिखर रही है चांदनी
बिखर रही है चांदनी
surenderpal vaidya
इश्क करना
इश्क करना
Ranjeet kumar patre
खिड़कियाँ -- कुछ खुलीं हैं अब भी - कुछ बरसों से बंद हैं
खिड़कियाँ -- कुछ खुलीं हैं अब भी - कुछ बरसों से बंद हैं
Atul "Krishn"
छान रहा ब्रह्मांड की,
छान रहा ब्रह्मांड की,
sushil sarna
"हमारा सब कुछ"
इंदु वर्मा
विष बो रहे समाज में सरेआम
विष बो रहे समाज में सरेआम
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
Dr Arun Kumar shastri एक अबोध बालक arun atript
Dr Arun Kumar shastri एक अबोध बालक arun atript
DR ARUN KUMAR SHASTRI
फूल भी खिलते हैं।
फूल भी खिलते हैं।
Neeraj Agarwal
दोहा
दोहा
गुमनाम 'बाबा'
"जुल्मो-सितम"
Dr. Kishan tandon kranti
कहने को तो सब है अपने ,
कहने को तो सब है अपने ,
ओनिका सेतिया 'अनु '
वृद्धाश्रम में दौर, आखिरी किसको भाता (कुंडलिया)*
वृद्धाश्रम में दौर, आखिरी किसको भाता (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
*अज्ञानी की कलम*
*अज्ञानी की कलम*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी
संसार एक जाल
संसार एक जाल
Mukesh Kumar Sonkar
ऊपर बने रिश्ते
ऊपर बने रिश्ते
विजय कुमार अग्रवाल
राज्य अभिषेक है, मृत्यु भोज
राज्य अभिषेक है, मृत्यु भोज
Anil chobisa
होली खेल रहे बरसाने ।
होली खेल रहे बरसाने ।
अनुराग दीक्षित
Loading...