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18 Feb 2022 · 1 min read

जीव ईश्वर से

ईश्वर स्निग्ध मुस्कान लिए
अपने आप में रहते हैं।
जीव रोना लिए अपने
चित्त में विचरते हैं।
जीव भोगी नित रोगी बन जीवन खोते हैं।
ईश्वर स्त्रष्टा – द्रष्टा ,निर्गुण, निरपेक्ष सर्वत्र बन हमे ( जीव ) सम्हालते हैं।
_ डॉ. सीमा कुमारी ,बिहार ( भागलपुर ) दिनांक-31-12-021की स्वरचित रचना हैं जिसे आज प्रकाशित कर रही हूँ।

Language: Hindi
Tag: मुक्तक
1 Like · 113 Views
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