*जीवन समझो खेल-तमाशा, क्षणभर की चिंगारी है (मुक्तक)*

जीवन समझो खेल-तमाशा, क्षणभर की चिंगारी है (मुक्तक)
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जीवन समझो खेल-तमाशा, क्षणभर की चिंगारी है
उदित हुआ जो सूरज उसके, ढलने की तैयारी है
क्यों पर्वत से निकली सरिता, क्यों सागर में मिल जाती
जीवन-क्रम है भूल-भुलैया, प्रश्नों भरी पिटारी है
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रचयिता : रवि प्रकाश,बाजार सर्राफा, रामपुर (उ. प्र.)
मोबाइल 99976 15451