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5 Jun 2023 · 1 min read

जीवन कभी गति सा,कभी थमा सा…

है सांस घुटती सी हौंसला थका-थका सा,
ज़मीं हताश और आसमां झुका-झुका सा।

सो ग‌ई सारी पगडंडियां
पसरी बेशुमार तन्हाईयां
अलग-अलग टुकड़ों में
बिखरी पड़ी है संवेदनाएं
बादलों से गिरी बूंदों की तरह
न ज़मी सोख रही
न दरिया गोद देता
सफ़ेद पड़ते रिश्तें
स्याह में छिपता अपनापन
पीठ पीछे चलते
चुगलियों के खंजर
रिसते अहसास
ख़ामोश जज़्बात
चिल्लाती उलझनें
कुचेरती दर्द
टूटता रूह का वजूद
लापता उम्मीदों का आशियां।

बढ़ता खार अबोध परिंदा सहमा-सहमा सा,
न जाने कैसा सलूक कर रहा ये,
जीवन कभी चलता सा कभी थमा सा ।

संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)

2 Likes · 2 Comments · 132 Views
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