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5 Apr 2018 · 1 min read

जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

क्या सच्चा है क्या है झूठा अंतर करना नामुमकिन है.
हमने खुद को पाया है बस खुदगर्जी के घेरे में ..

एक जमी वख्शी थी कुदरत ने हमको यारो लेकिन
हमने सब कुछ बाट दिया है मेरे में और तेरे में

आज नजर आती मायूसी मानबता के चहेरे पर
अपराधी को शरण मिली है आज पुलिस के डेरे में

बीरो की क़ुरबानी का कुछ भी असर नहीं दीखता है
जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

जीवन बदला भाषा बदली सब कुछ अपना बदल गया है
अनजानापन लगता है अब खुद के आज बसेरे में

जिसे देखिये चला रहा है सारे तीर अँधेरे में

मदन मोहन सक्सेना

Language: Hindi
Tag: कविता
345 Views
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