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8 Oct 2024 · 1 min read

जितनी स्त्री रो लेती है और हल्की हो जाती है उतना ही पुरुष भी

जितनी स्त्री रो लेती है और हल्की हो जाती है उतना ही पुरुष भी रो ले और हल्का हो जाये तो कई बेवजह की समस्याओं का समाधान हो जाए पर पुरुष को पुरुष होने का अहंकार उसे रोने नही देता फिर उसका दबा हुआ आँसू शब्दों का रूप लेकर मुँह से निकलेगा और विवाद उत्पन्न करेगा जबकि प्रकृति ने कोई भी भेद नही किया है स्त्री और पुरूष में, जितने आँसुओ की ग्रन्थि पुरुष की आँखों में है उतनी ही ग्रंथि स्त्री की आँखों में भी, परन्तु पुरुष होने का अहंकार बाधा बन जाता है

पुरुष के रोने में..!

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