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26 Aug 2016 · 1 min read

जाल बिछाये बैठे हैं लोग

यहाँ अपने चेहरों पर मुखोटे लगाये बैठे हैं लोग।
दूसरों को फंसाने को जाल बिछाये बैठे हैं लोग।

कोई मरता मर जाये उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता,
मरे हुओं पर भी गिद्ध सी नजर टिकाये बैठे हैं लोग।

अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं,
थोड़ी सी दौलत के लिए जमीर दफनाये बैठे हैं लोग।

इस दुनिया के रिश्ते नाते नजर नहीं आते उन्हें,
दौलत ही सब कुछ है खुद को समझाये बैठे हैं लोग।

माँ, बहनों की इज्जत तार तार हो जाती है सरे बाजार,
बेशर्मी और कामवासना के चश्में चढ़ाये बैठे हैं लोग।

तन बेचने वाली वेश्याओं को धिक्कारते हैं लोग अक्सर,
पर देश के गद्दारों अपने सिर पर बिठाये बैठे हैं लोग।

बन विपक्षी जनता की भलाई की बातें करते हैं नेता,
झूठे वादों पर उनके सुनहरे ख्वाब सजाये बैठे हैं लोग।

शहीदी दिवस पर छुट्टी होने के कारण शहीदों को याद करते हैं,
वरना उन पूण्य आत्माओं के सिद्धांत भुलाये बैठे हैं लोग।

पाक मोहब्बत अब रही नहीं देखो कैसा वक्त आ गया,
पर संग जीने मरने की झूठी कसम उठाये बैठे हैं लोग।

जिंदगी के सच से वाकिफ़ है यहाँ हर कोई “सुलक्षणा”,
पर झूठे अहंकार के नीचे सच को दबाये बैठे हैं लोग।

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