*जातियों में हम बॅंटे हैं, एक कब हो पाऍंगे (हिंदी गजल/ गीतिका)*

*जातियों में हम बॅंटे हैं, एक कब हो पाऍंगे (हिंदी गजल/ गीतिका)*
_________________________________
1
जातियों में हम बॅंटे हैं, एक कब हो पाऍंगे
एक हो भी पाऍंगे, या सोचते रह जाऍंगे
2
जन्म के आधार पर, जो जाति के कोष्ठक बने
सोच कर देखो जरा, अनुचित सभी कहलाऍंगे
3
जन्म के भेदों को कर दे, जो अमान्य तमाम सब
पृष्ठ पर इतिहास के, आदेश यह लिखवाऍंगे
4
एक दिन आएगा जब, बंधन मिटेंगे जाति के
गीत उस दिन कर्म-गुण के, हम गगन में गाऍंगे
5
जन्म से छोटे-बड़े का भाव जब मिट जाएगा
आत्मवत होंगे सभी, सब जाति एक कहाऍंगे
6
कोई ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय, शूद्र कोई हो गया
जन्म से दीवार कितनी, और हम खिंचवाऍंगे
7
सिद्धांत वह बेकार जो, व्यवहार में आता नहीं
चार वर्णों की व्यवस्था, इसलिए ठुकराऍंगे
———————————————
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451