जागते जागते दोपहर हो गयी
ना रही ये खबर कब सहर हो गयी
जागते जागते दोपहर हो गयी …
तर्बियत रंजिशों को नज़र हो गयी
आशियाने वफ़ा खंडहर हो गयी ..
सरहदों की हिफाज़त में मुश्किल नहीं
जिन्दगी तो शहर में ज़हर हो गयी …..
राह आसां कहाँ अब अमन की यहाँ
रहजनों के हवाले डगर हो गयी……
ऐसी तब्दीलियाँ आ गयी जिन्दगी में
बात ए तहजीब भी मुख़्तसर हो गयी ….
जितेन्द्र “जीत”