ज़हर ही ज़हर है और जीना भी है,

ज़हर ही ज़हर है और जीना भी है,
ज़हर में ही अमृत को ढूँढ़ते हैं !
कातिल को ही बना लें वो मुंसिफ,
अराजकता को ही अब से पूजते हैं !
अक्स
चंडीगढ़।
ज़हर ही ज़हर है और जीना भी है,
ज़हर में ही अमृत को ढूँढ़ते हैं !
कातिल को ही बना लें वो मुंसिफ,
अराजकता को ही अब से पूजते हैं !
अक्स
चंडीगढ़।