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19 Aug 2021 · 1 min read

ज़ख्म ऐ दिल

मत पूछो कितने ज़ख्म खाए हुए हैं ,
हम तो यारो हालात के सताए हुए हैं।

ज़बीं पर क्या है लिखा नहीं जानते ,
हम तकदीर से अपनी उलझे हुए हैं।

जिंदगी ने दिए मौके बे शुमार मगर ,
मंजिल -ऐ- आरजू लिए भटक हुए हैं।

तस्कीं नहीं होती बेसब्र दीवाना है हम ,
ना जाने कितने अरमानो को ढोए हुए है।

कभी तो आयेगा अच्छा वक्त हमारा भी ,
आँधियों मे उम्मीद ए शमा जलाये हुए हैं।

क्या हमारे ख्वाबों की ताबीर हो सकेगी ?,
ऐसे सवाल हमें कश्मकश में डाले हुए हैं।

माज़ी की यादों से यूं ही खुद को बहलाते हैं ,
कल का पता नही,आज को भी खोए हुए हैं।

अब तू ही दिखा कोई रास्ता”अनु”को ऐ खुदा !,
बड़ी आरजू लिए तेरे दर पर हम आये हुए हैं।

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Books from ओनिका सेतिया 'अनु '

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