जयबालाजी: पानी बहते रहने से ही,सरित- सलिल:: जितेन्द्र कमल आनंद ( पोस्ट३८)
पानी बहते रहने से ही सरित सलिल बनता निर्मल ।
जैसे दूँज- चॉद चलने से पूर्ण इन्दु बनता उज्जवल ।
” कमल” संत भी विमल हंसवत् मोतीको चुगनेवाला
चलता रहता एक गॉवसे अन्य गॉवको ही , बाला !!
—– जितेन्द्रकमल आनंद