जब से धरती बनी ,प्रकटे तारक चंद्र। जितेंद्र आनंद( पोस्ट ७८)
तुम्हारे नाम ( गीत )
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अस्फुट काव्योद्गार, व्यक्त तुम्हारे नाम !
जबसे धरती बनी , प्रकटे तारक चन्द्र !
जब से गंगा पही, तट घर – घाट अरन्थ्र ।
सुर्य रश्मि को चूम , विकसे कमल ललाम ।।
अनगिन थारे नाम , जन्म जन्म जग जिए ।
भूल न पाया कभी ,बारे जीवन दिये ।
दिव्य दृगों का रूप रूपित प्रात: शाम ।।
जगद्गुरु जगदीश , कहें राम या श्याम ।
निराकार अविकार , तुम्हीं एक निष्काम ।
तुम्हें पुकारे विश्व परमब्रह्म अविराम ।।
—— जितेंदंरकमलआनंद