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26 Nov 2016 · 1 min read

जब वजह न बची कोई बुलाने की तुम्हें…………..

जब वजह न बची कोई बुलाने की तुम्हें
हर तरह से की कोशिश भुलाने की तुम्हें

लौट कर ना आयेगा किसी तौर ए दिल वो
क्या पड़ी है अब दीये जलाने की तुम्हें

हाथ पकड़े थी मजबूरियाँ हर कदम यहाँ
बस रही कोशिश हालात से मिलाने की तुम्हें

क्या किसी ने देखा है वक़्त को रुकते हुए
ज़रूरत नहीं है इस को चलाने की तुम्हें

माँग कर महिवालों से मुहब्बत की धारा
सोच बैठे थे हम तो पिलाने की तुम्हें

हम नहीं जाने कुछ भी रहे बस इस कोशिश में
हाय नज़रों के नज़दीक़ लाने की तुम्हें

दिल मिरे तू मान जा न गरज ना ज़रूरत है
यां खिजाओं में गुलशन खिलाने की तुम्हें

——सुरेश सांगवान ‘सरु’

1 Comment · 304 Views
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