जबकि मैं इस कोशिश में नहीं हूँ

कभी हो होलिका दहन,
अपनी वर्षगाँठ पर,
और लोग समझे कि,
यह प्रेम की परिणीति है,
जबकि मैं इस कोशिश में नहीं हूँ।
लोग मना रहे हो जब दीपावली,
रावण की मृत्यु पर जब जश्न,
और उठ रहा हो धुँआ तुम्हारे घर,
रावण की आत्मा जल जाने पर,
जबकि मैं इस कोशिश में नहीं हूँ।
जब रचा जा रहा हो स्वयंवर,
द्रोपदी के विवाह के लिए,
और लगा रहे हो निशाना,
पांडव द्रोपदी को पाने के लिए,
और दुर्योधन हो आतुर तब,
तुम्हारा चीर हरण करने के लिए,
जबकि मैं इस कोशिश में नहीं हूँ।
तू तोड़े दम मेरे सामने,
देखूँ मैं तुमको बर्बाद होते हुए,
तुम तो कहते हो मुझको,
तुम्हारे किस्मत का दुश्मन,
ऐसे में परेशान होकर,
बनना पड़े मुझको दुःशासन,
जबकि मैं इस कोशिश नहीं हूँ।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)