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14 Feb 2023 · 2 min read

*जन्मजात कवि थे श्री बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग*

*जन्मजात कवि थे श्री बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग*
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*लेखक :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा* *रामपुर(उ. प्र.)मोबाइल 99976 15451*
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बदायूँ की धरती ही कुछ ऐसी रत्नगर्भा रही कि उसकी कोख से महान कवि जन्म लेकर समस्त वसुधा को अपनी सुगंध से महकाते रहे । इन्हीं में से एक नाम श्री बृजभूषण सिंह गौतम अनुराग का है ।आपका जन्म 30 जून 1933 को बदायूं जनपद में हुआ। 17 अगस्त 2017 को आपकी मृत्यु हुई।
बिक्री कर विभाग में कार्य करते हुए भी आपका स्वभाव इतना साहित्य-अनुरागी रहा कि आप निरंतर काव्य साधना में ही लीन रहे । गद्य के क्षेत्र में आपने कहानियां लिखीं, जिसका संग्रह प्रकाशित हुआ तथा पद्य के क्षेत्र में गीत ,गजल और नवगीत संग्रह रूप में प्रकाशित हुए ।
प्रतिभा वास्तव में युवावस्था से ही प्रकट होने लगती है । कहावत है कि पूत के पाँव पालने में नजर आने लगते हैं । जब मदन लाल इंटर कॉलेज, बिसौली में आप पढ़ते थे तथा आदर्श छात्रावास ,बिसौली में रहते थे ,उन्हीं दिनों आपके एक परम मित्र की मृत्यु हो गई जिसने आपको इतना भाव विह्वल कर दिया कि आपने अपने उस साथी की स्मृति में 21 गीतों का एक वेदना से आपूरित संग्रह ही रच डाला ।10 अक्टूबर 1951 को आदर्श छात्रावास बिसौली के पते से आपका यह *आंसू* नामक काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ । इसमें जहाँ एक ओर वेदना की छटपटाहट है ,वहीं दूसरी ओर एक जीवन-दर्शन भी प्रकट होता है और बताता है कि आपने इस सत्य को स्वीकार कर लिया था कि यह संसार क्षणभंगुर है तथा यहां शरीर की नश्वरता एक कटु सत्य है। संग्रह में आपका एक गीत इसी दार्शनिक चेतना का वाहक है । वास्तव में तो गीता में जिस शरीर की नश्वरता और आत्मा की अमरता का गान किया गया है, वह आपके इस गीत से भलीभांति स्पष्ट हो रही है। किशोरावस्था में इस प्रकार के टूटन भरे क्षण अनेक बार कुछ गहरा घाव भी देते हैं और साथ ही साथ मनुष्य को जीवन के संघर्षों में मानसिक बल भी प्रदान कर जाते हैं ।
गीत इस प्रकार है :-
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“पाया रोता”
————–
मैंने जग को पाया रोता !
जान लिया है पूर्ण रूप से,
नहीं किसी का कोई होता !

धनी, निर्धनी, ऊंच, नीच सब,
इस नश्वर जग में आते हैं,
साथ न कोई अपने लाता,
और न कुछ लेकर जाते हैं,
रहे पड़ी मिट्टी की काया
भाग जाये प्राणों का तोता !

मातु-पिता,भाई औ’ भगिनी,
पुत्र, मित्र झूठे नाते हैं,
छोड़ समय पर इस दुनिया में
भाग धाम अपने जाते हैं,
रो-रोकर मर जाना लेकिन ,
कोई नहीं किसी का होता !

कोई रोता व्यथित हृदय से
कोई अनुपम साज बजाता,
विरह इधर तो उधर मिलन के,
कोई मन्द-मन्द स्वर गाता
करो यत्न शत-कोटि न मिटता,
लिखा भाग्य का ही है होता !

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