जनरेशन गैप / पीढ़ी अंतराल
बातों ही बातों में बच्चों, मैं अपनी बात बताता हूँ।
अब नई-पुरानी पीढ़ी के, लो अंतर को समझाता हूँ।
जब साथ समय के जीने का, अंदाज बदलता जाता है।
यह परिवर्तन अंग्रेजी में, जनरेशन गैप कहाता है।
जब अकड़ ज्ञान पर हो अपने, तब समझ वहीं टकराते हैं।
ऐसी घटनाएँ होतीं जब, परिवार टूटते जाते हैं।
था एक जमाना जाड़े में, हम कौड़ा खूब जलाते थे।
तब बैठ उसी के इर्द-गिर्द, ठंढक को दूर भगाते थे।
दादा-दादी के संग चर्चा, तब अपना ज्ञान बढ़ाता था।
उनके अनुभव का गाथा भी, बच्चों के मन को भाता था।
अवकाश अगर मिलता हमको, झटपट बगिया में जाते थे।
ओल्हा-पाती, गिल्ली-डंडा, झूले में पेंग बढ़ाते थे।
खो-खो या खेल कबड्डी हो, सब के सब अद्भुत होते थे।
सुनने को कथा परी वाली, हम दादी के संग सोते थे।
लेकिन अब वैसी बात कहाँ, है एकल इन परिवारों में।
हो गई चिनाई खुशियों की, ऊँची-ऊँची दीवारों में।
यादें अब आज बुजुर्गों की, किसको अब भला सतातीं हैं।
मम्मी-पापा तक से बातें, छुट्टी पर ही हो पातीं हैं।
अब आज पुराने खेल भला, बच्चों को कहाँ लुभाते हैं।
सोते जगते अब नौनिहाल, मोबाइल धुन ही गाते हैं।
यूट्यूब, फेसबुक से नाता, अब अपनों से है दूर किया।
सब अपने तक ही सीमित हैं, इतना सबको मजबूर किया।
गरमी की रातों में छत पर, होती थी वो है बात कहाँ।
आनंदित जो कर दे हमको, वह धवल चाँदनी रात कहाँ।
तकनीकें नई-नई आकर, जीवन-पथ को ही मोड़ गईं।
फिर चकाचौंध की इच्छाएँ, अपनो को पीछे छोड़ गईं।
है पढ़ने की सुविधा हमको, मोबाइल पर पढ़ना चहिए।
नित होते हैं कुछ शोध नए, हमको आगे बढ़ना चहिए।
ना भूलो रीति-रिवाजों को, औ संस्कार भी त्यागो ना।
जो मातु-पिता हैं जन्म दिए, तुम उन्हें छोड़कर भागो ना।
आओ सब बच्चे मिलजुलकर, हम परिवर्तित स्वभाव करें।
दादा-दादी खुश हों जिससे, अब ऐसे ही वर्ताव करें।
उनके अनुभव से सीखें कुछ, कुछ उन्हें बताएँ बात नई।
हम शीश झुका उन चरणों में, पाएँ नित-नित सौगात नई।
नन्दलाल सिंह ‘कांतिपति’