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15 Jul 2016 · 1 min read

छोटा सा गांव हमारा

पुरवईया की महकी हवाँ
बागो से चुराती खुशबू
लोगो की आने की
यहाँ रहता है ज़ुस्तज़ु

अमरैया से कोयल बोली
आ रही मधु ऋतू
बरगद की छाँव में
बैठे है ढोलू -गोलू

मन मोहक छटा बिखरती
चारो ओर गांव की हरियाली
हर दिन रहता है त्यौहार जैसा
गुलजार सुबह शाम गली

सोना उगलता है तभी
पालन-पोषण होता है
है मिट्ठी की खुशबू
प्रकृति की धनी है

भूमिपुत्र का गांव हमारा
सुन्दर मनोरम लगता है
देख हसदेव नदी की किनारा
छत्तीसगढ़ में है बसा
छोटा सा गांव हमारा,
खेत खलिहान हरी-भरी
सुन्दर “मोहतरा ” गांव हमारा

कवि:- दुष्यंत कुमार पटेल “चित्रांश”

Language: Hindi
272 Views
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