छलके जो तेरी अखियाँ….

छलके जो तेरी अखियाँ
कैसे सहे तू ही बता..!
तुझ से हैं अटूट रिश्ता
कैसे उसे टूटने दे भला..!
होश हैं जब से संभाला
बस तुझ को हैं पाया
तेरे बिना कोई और… न भाया…!
दर्द न छुएं तुझे करते हैं रब से दुआ..!
छलकाओं न तुम अँखियाँ
बह जाएंगी चाहत की नदियाँ..!
फिर… ढूढ़ न पाओंगे चाहत हमारी
और …अगर फिर…भी आँखे हो जाए ‘नम’
तो…कैसे जिएं हम.. सीखा दो ज़रा….!!!!